महात्मा गाँधी जी और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन
मोहनदास करमचन्द गाँधी
जन्म | 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर, गुजरात में |
मृत्यु | 30 जनवरी 1948; गोडसे द्वारा गोली मार कर |
पिता का नाम | करमचन्द गाँधी ( पिता जी पोरबन्दर, राजकोट, बीकानेर के दीवान थे ) |
माता का नाम | पुतलीबाई |
पत्नी का नाम | कस्तूरबा गाँधी ( विवाह -1882 में, 13 वर्ष की आयु में ) |
गाँधी जी के पुत्र | हरिलाल, रामदास, मणिलाल, देवदास – चार पुत्र |
गाँधी जी का पांचवा पुत्र | जमनालाल बजाज |
बैरिस्टरी की शिक्षा | इंग्लैंड में पूरी की (1889-91) |
गाँधी जी 1893 में एक भारतीय मुसलमान दादा अब्दुल्ला के केस के लिए दक्षिण अफ्रीका गए (24 वर्ष की आयु में)| गाँधी जी 9 जनवरी 1915 को भारत वापस आते है (46 वर्ष की आयु में)| विवेकानंद ने 1893 में ही प्रथम विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लेने के लिए शिकागो, अमेरिका गए थे |
गाँधी जी की उपाधियाँ
उपाधि | उपाधि देने वाले |
महात्मा | रबिन्द्र नाथ टैगोरे |
राष्ट्र पिता | सुभाष चन्द्र बोस |
बापू | जवाहर लाल नेहरु |
अर्द्ध नग्न फकीर | चर्चिल |
मंगल बाबा | खान बहादुर गफ्फार खान |
जादूगर | मुजीबुर रहमान |
केसर-ए-हिन्द | अंग्रेजों ने |
गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1915)
गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतियों के साथ वहां अमानवीय दुर्व्यवहार एवं शोषण देखा | वह स्वयं भी एक कटु अनुभव से गुजरे | “डरबन से प्रिटोरिया” की यात्रा के दौरान प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद अंग्रेजों ने रंगभेद के कारण ‘मेरित्सबर्ग स्टेशन’ पर उन्हें बाहर उतार दिया (1893 में ही) | इस घटना के बाद गाँधी जी ने अंग्रेजों की रंगभेद की नीति का विरोध करना शुरू कर दिया |
1894 | ‘नेटाल इण्डियन कांग्रेस’ की स्थापना की, रंगभेद के विरोध के लिए |
1904 | ‘फिनिक्स आश्रम’ की स्थापना, डरबन में |
1906 | ‘एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट’ का विरोध (भारतीयों के पंजीकरण से सम्बंधित), सफलता प्राप्त की, गाँधी जी द्वारा पहली बार “अवज्ञा आन्दोलन” (सत्याग्रह) का यही प्रयोग था | |
1910 | ‘टाल स्टाय फार्म’ की स्थापना (जर्मन शिल्पकार ‘कालेन बाख’ के सहयोग से ), यही गाँधी आश्रम के नाम से प्रशिद्ध हुआ | इसका उद्धेश्य व्यवसाहिक शिक्षा प्रदान करना | |
1913 | “गिरमिटिया प्रथा” के विरुद्ध सत्याग्रह, 1914 में सफलता मिली; “गिरमिटिया प्रथा” : भारतीय मजदूरों द्वारा देश के बाहर एक निश्चित समयावधि (5/10 वर्ष) तक काम करने के समझौते को गिरमिट कहते थे| यह प्रथा ‘गिरमिटिया प्रथा’ कहलाती थी| दक्षिण अफ्रीका द्वारा 3 पौण्ड का कर भी लगा दिया गया| (इसी के विरोध में गाँधी जी ने सत्याग्रह करते है और सफल होते है) |
पोल टैक्स : जिन लोगो का विवाह इसाई धर्म से नहीं होता था| उनका विवाह अवैध माना जाता था और उन पर एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में जो टैक्स लगाया जाता था उसे पोल टैक्स कहते थे| गाँधी जी ने इसका विरोध किया और सफल हुए| | |
1915 | गाँधी जी भारत वापस आते है (9 जनवरी 1915); 9 जनवरी – प्रवासी भारतीय दिवस |
गाँधी जी को सर्वप्रथम सत्याग्रह की प्रेरणा ‘हेनरी डेविड थारो’ के निबन्ध “Civil Disobedience” से मिली थी|
गाँधी जी भारत में (9 जनवरी, 1915-30 जनवरी 1948)
9 जनवरी 1915 | गाँधी जी वापस भारत आते है; प्रवासी भारतीय दिवस – 9 जनवरी |
राजनीतिक गुरु | गोपाल कृष्ण गोखले (गोखले के राजनीतिक गुरु – महादेव गोविन्द रानाडे) |
गुरु की सलाह | गाँधी जी को एक वर्ष भारत भ्रमण की सलाह दी| और कहा : ‘मुँह रखना बंद, आँख और कान खुले रखना’, लोगो की परेशनियाँ और परिस्थितिया को समझो| |
1917 | साबरमती आश्रम, अहमदाबाद में (साबरमती नदी के किनारे) |
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गाँधी जी ने युवाओ से अंग्रेजों की सहायता करने की अपील की थी| इसी कारण अंग्रेजों ने इन्हें “केसर-ए-हिन्द” की उपाधि दी थी| और कुछ लोगो ने इन्हें “भर्ती करने वाला सार्जेंट” कहा|
गाँधी जी के समय के प्रमुख आन्दोलन (1917-1948)
- चम्पारण सत्याग्रह (10 अप्रैल 1917) – गाँधी जी का भारत में पहला सत्याग्रह
- अहमदाबाद मिल आन्दोलन (22 मार्च, 1918): गाँधी जी , सरदार वल्लभ भाई पटेल, इन्दुलाल यागनिक, शंकरलाल बैंकर, महादेव देसाई, मोहनलाल पंड्या, रवि शंकर व्यास
- खेड़ा सत्याग्रह (22 मार्च 1918) –
- खिलाफत आन्दोलन (1919)
- असहयोग आन्दोलन (1920-1922)
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1931)
- व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940)
- भारत छोड़ों आन्दोलन (1942)
चम्पारण सत्याग्रह (10 अप्रैल, 1917) | नील की खेती के विरुद्ध, राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर (1916 में लखनऊ में मिलते है), तिनकठिया पद्धति (3/20 भाग पर नील की खेती); प्रथम व सफल सत्याग्रह, इसी अवसर पर रबिन्द्र नाथ टैगोर गाँधी जी को महात्मा की उपाधि देते है| सहयोगी – डा. राजेन्द्र प्रसाद , जे बी कृपलानी, मजरुल हक, ब्रज किशोर प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा, बाबू गया प्रसाद सिंह |
अहमदाबाद मिल आन्दोलन(15 मार्च 1918) | मजदूरों द्वारा प्लेग बोनस समाप्त किये जाने के विरोध में, गाँधी जी 35% बोनस दिलाने में सफल; पहली बार भूख हड़ताल की| |
खेड़ा सत्याग्रह (22 मार्च 1918), गुजरात | अकाल तथा लगान वृद्धि के खिलाफ; बल्लभभाई पटेल एवं विट्ठल भाई पटेल द्वारा आमंत्रण, गाँधी जी की सफलता, जो लगान देने में सक्षम है केवल वही दे| |
रोलेट एक्ट (18 मार्च 1919) | सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में समिति (); किसी भी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था| काला कानून : “नो अपील नो वकील नो दलील”, महात्मा गाँधी जी ने इसके विरोध में 6 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह सभा की स्थापना की और व्यापक हड़ताल का आवाहन किया| गाँधी जी के पंजाब प्रवेश पर रोक, और हरियाणा के पलवल से गिरफ्तार कर पुनः बम्बई छोड़ दिया गया| |
जलियावाला बाग हत्याकाण्ड (13 अप्रैल 1919) | 9 अप्रैल 1919 : अमृतसर में डा. सत्यपाल एवं डा. सैफुद्दीन किचलु को गिरफ्तार कर लिया गया, इसके कारण जनता में आक्रोश भड़क गया| 13 अप्रैल 1919 : बैसाखी के दिन, जलियावाला बाग में शांतिपूर्ण सभा पर जनरल डायर द्वारा गोली बारी, 1000 से अधिक लोगो की मौत| इस हत्याकाण्ड को जलियावाला हत्याकाण्ड कहा जाता है| रबिद्र नाथ टैगोर ने नाईट हुड की उपाधि लौटा दी, शंकरन नायर ने गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् से इस्तीफा दे दिया| |
हंटर कमेटी (1 अक्टूबर 1919) | सरकार द्वारा 1 अक्टूबर 1919 को हंटर कमेटी का गठन, 8 सदस्य – 5 अंग्रेज , 3 भारतीय (चिमन लाल, सुल्तान अहमद और जगत नारायण); मार्च 1920 को कमेटी की रिपोर्ट पेश| इससे पहले ही सरकार ने ‘Indemnity Bill’ पास किया| आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग का कारण देकर जनरल डायर को सेवा से हटा दिया जाता है और इंग्लैंड पहुचने पर भव्य स्वागत किया गया| “ब्रिटिश सम्राज का शेर” की उपाधि दी गयी| |
तहकीकात समिति | भारतीयों ने मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में तहकीकात समिति बनाई, सदस्य – मोती लाल नेहरु, गाँधी जी, सी आर दास, अब्बास तैयब जी, पुपुल जयकर; रिपोर्ट – जनरल डायर दोषी, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं| |
भारत शासन अधिनियम 1919 (Montagu-chelmsford Reform) – प्रान्तों में द्वैध शासन लागू
खिलाफत आन्दोलन (1919- 1924)
प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और तुर्की के मध्य हुई “सेवर्स की संधि” (10 अगस्त 1920) को मुस्लिम समुदाय ने खलीफा (मुसलमानों का धार्मिक एवं राजनीतिक गुरु)का अपमान समझा| भारतीय मुसलमानों द्वारा खलीफा के साथ इस व्यवहार के कारण व खलीफा के पद की पुनः स्थापना हेतु चलाया गया आन्दोलन खिलाफत आन्दोलन कहलाता है| खिलाफत आन्दोलन के नेता – मौलाना मोहम्मद अली, शौकत अली, हशरत मोहानी, अबुल कलाम आजाद; नवम्बर 1919 दिल्ली में ‘अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी’ के अधिवेशन की अध्यक्षता गाँधी जी ने की थी| गाँधी जी ने खिलाफत आदोलन को हिन्दू-मुस्लिम एकता का सुनहरा अवसर का प्रतीक कहा था|
नवम्बर 1922 में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में क्रांति होती है और 3 मार्च 1924 को खलीफा का पद समाप्त कर दिया जाता है| तुर्की को धर्म निरपेक्ष घोषित कर दिया जाता है| मित्र राष्टों से संधि हो जाती है| परिणाम – भारत में खिलाफत आन्दोलन समाप्त हो जाता है|
नोट –
- अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन – सितम्बर 1919
- खिलाफत दिवस – 31 अगस्त 1920
- जिन्ना द्वारा खिलाफत आन्दोलन का विरोध; खान अब्दुल गफ्फार खान द्वारा सहयोग
असहयोग आन्दोलन (1 अगस्त 1920 – 12 फरवरी 1922)
कांग्रेस का कलकत्ता का विशेष अधिवेशन | सितम्बर 1920, अध्यक्ष – लाला लाजपत राय, असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव रक्खा और स्वीकार कर लिया गया, प्रस्ताव का विरोध – लाला लाजपत राय, विपिनचंद्र पाल, सी आर दास, मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय, एनी बेसेंट, सुरेन्द्र नाथ बेनर्जी| प्रस्ताव का समर्थन – मोती लाल नेहरु, अली बंधु |
कांग्रेस का वार्षिक नागपुर अधिवेशन | दिसम्बर 1920, अध्यक्षता – टी विजय राघवाचार्य ने, आन्दोलन के प्रस्ताव की पुष्टि की गई, प्रस्ताव रक्खा – सी आर दास ने, उद्देश्य – वैधानिक एवं शांतिपूर्ण तरीके से स्वराज्य की प्राप्ति, [प्रारंभ – 1 अगस्त 1920, समाप्त – 12 फरवरी 1922], एनी बेसेंट, जिन्ना, विपिन चन्द्र पाल ने कांग्रेस छोड़ दी| बारदोली सत्याग्रह – 12 फरबरी 1928, नेतृत्व – सरदार वल्लभ भाई पटेल ने |
तिलक जी की मृत्यु | 1 अगस्त 1920, तिलक कोष या तिलक स्वराज फण्ड – 1 करोड़ का फण्ड, |
रचनात्मक कार्य | स्वदेशी को बढावा, हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल, राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना (काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र विद्यापीठ), पंचायती अदालतों की स्थापना करना, |
नकारात्मक कार्य | विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार, सरकारी उपाधियाँ, अदालतों, स्कूल, कॉलेज आदि सबका बहिस्कार |
प्रिंस ऑफ़ वेल्स की भारत यात्रा | 1921 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स की भारत यात्रा के दौरान बॉम्बे एवं पुरे देश में जनता द्वारा जोर-शोर से बहिस्कार किया जाता है, |
चौरी चौरा काण्ड | 4 फरबरी 1922, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में, 22 पुलिस कर्मियों को चौकी में जला कर मार डालने की घटना, 170 लोगों को मृत्युदंड की सजा, लेकिन 151 को मदन मोहन मालवीय ने बचा लिया, |
समापन की घोषणा | 12 फरवरी 1922 को गाँधी जी द्वारा बारदोली, गुजरात में असहयोग आन्दोलन के समापन की घोषणा की गयी| गाँधी जी के इस फैसले से सभी महत्वपूर्ण नेता नाराज हो जाते है| |
गाँधी जी गिरफ्तार | 10 मार्च, 1922 को, न्यायाधीस ब्रूमफील्ड द्वारा गाँधी जी को 6 वर्ष की सजा, ख़राब स्वस्थ के कारण 5 फरबरी, 1924 को रिहा कर दिया जाता है| |
बेलगाँव अधिवेशन | 1924 में कांग्रेस का बेलगाँव अधिवेशन, गाँधी जी पहली बार कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता करते है| |
वाइसराय (आन्दोलन के समय) | आन्दोलन के प्रारम्भ – लार्ड चेम्सफोर्ड (1916-1921), आन्दोलन के समाप्त – लार्ड रीडिंग (1921-1926), चौरी-चौरा काण्ड के समय (4 फरवरी 1922) |
गाँधी जी द्वारा वापस की गयी उपाधियाँ | केसर-ए-हिन्द, जुलू युद्ध पदक, बोवर युद्ध पदक (अंग्रेजो द्वारा दी गयी), जमनालाल बजाज ने ‘रायबहादुर’ की उपाधि वापस कर दी| |
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
प्रमुख कारण | 1924 के बाद से रास्ट्रीय आन्दोलन में निष्क्रियता, 1929 में लाहौर का एतिहासिक अधिवेशन(नेहरु जी की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज्य की माँग की घोषणा, 26 जनवरी 1930 को सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया), साइमन कमीशन से असंतोष, आर्थिक मंदी का प्रभाव (1929-30), सरकार द्वारा गाँधी जी की 11 सूत्री मांगो को अस्वीकार कर देना (गाँधी जी ने कहा – “मैंने रोटी मांगी और बदले में मुझे पत्थर मिला”) |
दांडी मार्च | 12 मार्च – 6 अप्रैल 1930, शुभारम्भ – 12 मार्च 1930, साबरमती आश्रम, अहमदाबाद से; नमक कानून का उल्लंघन (6 अप्रैल 1930 को), दांडी, नवसारी जिला, गुजरात में; पैदल तय की गयी दूरी – 241 मील (385 km), 24 दिनों में (5 अप्रैल को दांडी पहुचें और 6 अप्रैल को नमक कानून तोड़ा); कुल सहयोगी – 78; सुभाष चन्द्र बोस ने गाँधी जी की डंडी यात्रा की तुलना – नेपोलियन के पेरिस मार्च और मसोलियन के रोम मार्च से; इस तरह की यात्रा गाँधी जी साउथ अफ्रीका में 1913 में की थी जिसमे 1200 से अधिक लोग शामिल हुए थे (महिलायों ने भी बढकर हिस्सा लिया था). |
आन्दोलन का विस्तार | 1. पश्चिमोत्तर भारत – खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गाँधी या फ्रंटियर गाँधी, बादशाह खान; खुदाई खिदमतगार या लाल कुर्ती दल); 2. पेशावर – गढ़वाल रेजिमेंट के वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाने से मना कर दिया; 3. पूर्वोत्तर भारत – मणिपुर में यदुनाग के नेतृत्व में (यदुनाग को फाँसी दे दी जाती है), यदुनाग की बहन ‘Gaidinliu’ (13 वर्ष) ने नेतृत्व संभाला और ये “जियतंरग आन्दोलन” के नाम से प्रसिद्ध हुआ; नेहरु जी ने Gaidinliu को रानी की उपाधि दी थी; 4. बम्बई – धरासना प्रमुख केंद्र; सरोजिनी नायडू, इमाम साहब, माणिकलाल आदि के नेतृत्व में; सरकार द्वारा आन्दोलन के खिलाफ ‘दमन चक्र’; वेब मिलर (अंग्रेजी पत्रकार) ने लिखा – ‘सरकार द्वारा ऐसा दमन चक्र मैंने कभी नहीं देखा’; 5. दक्षिण भारत – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने नेतृत्व किया; नोट – इस आन्दोलन में महिलाओं द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका |
गाँधी जी की गिरफ़्तारी | गाँधी जी को 5 मई 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया (जेल – यरवदा जेल में रक्खा गया); 26 जनवरी 1931 को लार्ड इरविन द्वारा रिहा कर दिया गया| |
गाँधी-इरविन समझौता | 5 मार्च 1931 को दिल्ली में; तेज बहादुर सप्रू और एम आर जयकर के प्रयत्नों से; आन्दोलन के तीब्र विस्तार, लोगो की देशभर में भागीदारी (खासकर महिलायों की)और आन्दोलन को नियंत्रित करने में सरकार की विफलता के कारण इरविन को समझौते के लिए मजबूर होना पड़ा; समझौते की प्रमुख शर्ते – कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं की जब्त संपत्ति को वापस करना, जो हिंशात्मक कार्यवाहियों में लिप्त नहीं पाए गए उनकी रिहाई, शांतिपूर्ण धरनों की अनुमति, समुद्र के किनारे के लोगो को नमक बनाने और एकत्रित करने की छूट; इरविन की शर्ते – सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति, गाँधी जी द्वतीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने ब्रिटेन जायेंगे; |
द्वितीय गोलमेज सम्मलेन | सितम्बर 1931 में, गाँधी जी कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में सम्मलित होने लन्दन जाते है; सांप्रदायिक गतिरोध के कारण सम्मलेन असफल रहता है; 28 दिसम्बर 1931 को गाँधी जी भारत वापस लौटते है; वायसराय मिलने से इंकार कर देता है| |
पुनः आन्दोलन का प्रारंभ | 4 जून 1932 को गाँधी जी पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत करते है; लेकिन जल्द ही आन्दोलन बिखर जाता है; अतः मई 1934 के बम्बई अधिवेशन में आन्दोलन को वापस ले लिया जाता है| |
भारत छोड़ों आन्दोलन या अगस्त क्रांति (अगस्त 1942)
वर्धा अधिवेशन | 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस का वर्धा अधिवेशन में भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव पेश; पहले कांग्रेस गाँधी जी को नेतृत्व देने को तैयार नहीं होती परन्तु गाँधी जी के ये कहने पर कि “मैं इस देश की बालू से ही कांग्रेस से बड़ा आन्दोलन खड़ा कर सकता हूँ”, कांग्रेस गाँधी जी को नेतृत्व देने को तैयार हो जाती है| ‘8 अगस्त 1942 को मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में बम्बई के एतिहासिक ग्वालियर टैंक मैदान में प्रस्ताव पास हो जाता है’; गाँधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया, आज़ादी से कम हम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगें| |
ऑपरेशन जीरो आवर | 9 अगस्त 1942; अंग्रेज सरकार ने ऑपरेशन जीरो आवर चलाया और सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया| |
भूमिगत गतिविधियाँ | राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, जय प्रकाश नारायण, उषा मेहता, बीजू पटनायक, अच्चुत पटवर्धन, सुचेता कृपलानी, आर पी गोपनका |
नोट | गाँधी जी, कस्तूरबा गाँधी, महादेव देसाई, सरोजिनी नायडू (पूना के आगा खां पैलेस में रक्खा गया); कस्तूरबा गाँधी और महादेव देसाई जी की मृत्यु इसी दौरान आगा खां पैलेस में हो जाती है| राजेंद्र प्रसाद – बांकीपुर जेल, पटना; जय प्रकाश नारायण – हजारी बाग जेल, पटना जवाहर लाल नेहरु, गोविन्द वल्लभ पन्त, पट्टाभि सीतारमैया – अहमद नगर और अल्मोड़ा जेल जवाहर लाल नेहरु – अहमद नगर जेल, हजारी बाग जेल और अंत में अल्मोड़ा जेल भेजा गया; लगभग 1000 से अधिक दिन इसी दौरान नेहरु जी ने जेल में काटे| |
सामानांतर सरकारे | बलिया, तामलुक, सतारा इत्यादि स्थानों पर |
गाँधी जी का उपवाश | 10 फरवरी 1943 को गाँधी जी उपवाश पर बैठ जाते है और 7 मार्च को अचानक समाप्त कर देते है| |
गाँधी जी की रिहाई | 6 मई 1944 को गाँधी जी को रिहा कर दिया जाता है| |
अन्य जानकारियां – गाँधी जी से सम्बंधित
गाँधी जी की मृत्यु | 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा में जाते वक्त नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मार कर हत्या; गोडसे के सहयोगी – नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, गोपाल गोडसे, शंकर किश्तैया; समाधी स्थल – राजघाट, दिल्ली |
समाचार पत्र | 1. इंडियन ओपिनियन – 1906, अंग्रेजी में, साउथ अफ्रीका से 2. यंग इंडिया – 1919, अंग्रेजी भाषा में, अहमदाबाद से 3. नव जीवन – 1919, गुजराती व हिंदी में, अहमदाबाद से 4. हरिजन – 1933, गुजराती व हिंदी में, पूना से |
गाँधी जी की पुस्तकें | 1. हिन्द स्वराज – 1909, साउथ अफ्रीका में 2. सत्य के साथ मेरे प्रयोग – 1927 3. गीता बोध 4. गीता महिमा 5. मेरे सपनों का भारत |
गाँधी जी के समय के प्रमुख घटनाएं (1917-1948)
- रोलेट एक्ट (18 मार्च 1919)
- जलियावाला बाग हत्याकाण्ड (13 अप्रैल, 1919)
- चौरी चौरा काण्ड (4 फरबरी, 1922) : चौरी-चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में है|
- स्वराज पार्टी या कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी (1 जनवरी, 1923) : गया वार्षिक अधिवेशन (दिसम्बर 1922) के बाद, चितरंजन दास (अध्यक्ष) और मोतीलाल नेहरु (महामंत्री) ने इलाहबाद में की थी| 16 जून, 1925 को सी आर दास की मृत्यु के साथ ही स्वराज पार्टी का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है|
- साइमन कमीशन या स्वेत कमीशन (नवम्बर 1927 में बनाया गया और 1928 में भारत आया) : चेयरमैन – सर जॉन साइमन, सात सदस्यों का समूह (विरोध का मुख्य कारण – एक भी भारतीय सदस्य नहीं था), बी. आर. अम्बेडकर और पेरियार इ. वी. रामास्वामी ने समर्थन दिया; कांग्रेस नेताओं और मुस्लिम लीग सहित पुरे देश में विरोध किया गया| लाला लाजपत राय ने लाहौर में विरोध किया और लाठी चार्ज में गंभीर रूप से घायल हुए| 17 नवम्बर 1928 को उनकी मृत्यु हो गयी|
- नेहरु रिपोर्ट (28 अगस्त 1928) : चेयरमैन – मोतीलाल नेहरु, सेक्रेटरी – जवाहर लाल नेहरु
- प्रथम गोल मेज सम्मलेन (नवम्बर 1930 – जनवरी 1931) – लन्दन में, कुल 89 लोगों ने भाग लिया; कांग्रेस ने नहीं भाग लिया; तेज बहदुर सप्रू, एम आर जयकर, मोहम्मद अली जिन्ना, बी आर अम्बेडकर आदि ने भाग लिया|
- गाँधी-इरविन समझौता – 5 मार्च 1931 को दिल्ली में
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – सितम्बर 1931 में, गाँधी जी कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर लन्दन जाते है (जहाज – एस एस राजपुताना से, ठहरे – किंग्सले हाँल, लन्दन में); विंस्टन चर्चिल ने गाँधी जी को देशद्रोही फकीर कहा; 28 दिसम्बर 1931 को गाँधी जी भारत वापस लौटते है; सांप्रदायिक गतिरोध के कारण सम्मलेन असफल रहा;
- सांप्रदायिक पंचाट व पूना समझौता (16 अगस्त 1932) – इंग्लैंड के प्रधानमंत्री मैक डोनाल्ड द्वारा 16 अगस्त 1932 को कम्युनल अवार्ड या सांप्रदायिक पंचाट की घोषणा की जाती है; दलितों को अल्पसंख्यक मान कर पृथक सांप्रदायिक निर्वाचन की व्यवस्था (बाँटो और राज्य करो की नीति); गाँधी जी इसके विरोध में पुणे की यरवदा जेल में ही 20 सितम्बर 1932 को आमरण अनशन कर देते है; पूना पैक्ट (24 सितम्बर 1932) : गाँधी जी व अम्बेडकर जी के मध्य हुआ (सांप्रदायिक पंचाट धराशायी हो गया); दलितों के लिए विधान सभाओं में सीट दोगुनी से भी ज्यादा (71 से बढाकर 148) कर दी गयी|
- तृतीय गोलमेज सम्मलेन (27 सितम्बर – 24 दिसम्बर 1932) – कांग्रेस ने नहीं भाग लिया; “बी आर अम्बेडकर ने तीनों ही गोलमेज सम्मलेन में भाग लिया था”,
- द्वितीय विश्व युद्ध (1939)
- अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त 1940) – लार्ड लिंलिथगों द्वारा
- व्यतिगत सत्याग्रह (17 अक्टूबर 1940) – अगस्त प्रस्ताव के विरोध में गाँधी जी ने 17 अक्टूबर 1940 को पवनार आश्रम (महाराष्ट्र में) से व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की; प्रथम सत्याग्रही – आचार्य विनोबा भावे, द्वितीय सत्याग्रही – पंडित जवाहर लाल नेहरु; 20000 से भी अधिक सत्याग्रहियो ने गिरफ़्तारी दी, इसी आन्दोलन के दौरान “दिल्ली चलो” का नारा दिया गया|
- पाकिस्तान की माँग – 23 मार्च 1940 को लाहौर में मुस्लिम लीग का अधिवेशन; अध्यक्षता – मोहम्मद अली जिन्ना ने; प्रस्ताव – एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के आलावा कुछ भी स्वीकार नहीं; 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया गया जिसमे बहुत सारे दंगे हुए और लाखों लोग मारे गए|
- क्रिप्स प्रस्ताव (11 मार्च 1942, घोषणा) – सर स्टाफोर्ड क्रिप्स; प्रमुख प्रस्ताव – युद्ध के बाद एक भारतीय संघ का निर्माण, युद्ध के बाद संविधान निर्मात्री सभा का गठन, एक नए भारतीय संविधान के निर्माण तक रक्षा का उत्तरदायित्व ब्रिटिश सरकार का होगा; कांग्रेस व मुस्लिम लीग द्वारा अस्वीकार कर दिया गया| गाँधी जी – पोस्ट डेटेड चेक (आगे की तरीक का चेक), नेहरु जी – डूबते हुए बैंक का उत्तर तिथीय चेक; गाँधी जी ने कहा – “क्रिप्स प्रस्ताव एक टूटते हुए बैंक के नाम एक उत्तर दिनांकित चेक है”; अप्रैल 1942 में क्रिप्स प्रस्ताव वापस ले लिया जाता है|