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प्राचीन भारत का साहित्य एवं साहित्यकार

यूनानी लेखक हेरोडोटस (5वीं शती ई.पू.) को ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है। हिस्टोरिका उसकी प्रसिद्ध पुस्तक है, जिसमें 5वीं शती ई.पू. के भारत-फारस संबंधों का विवरण (अनुश्रुतियों के आधार पर) मिलता है। मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त ने की थी। इस ग्रंथ से मौर्य इतिहास, मुख्यतः चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर प्रकाश पड़ता है। इसमें चंद्रगुप्त मौर्य को ‘वृषल’ तथा ‘कुललीन’ कहा गया है। धुंडिराज ने मुद्राराक्षस पर टीका लिखी है।

प्राचीन भारत का साहित्य एवं साहित्यकार
प्राचीन भारत का साहित्य एवं साहित्यकार

व्याकरणाचार्य पाणिनि नंद शासक महापद्मनंद के मित्र थे, अष्टाव्यायी उनकी प्रसिद्ध कृति है। वाराहमिहिर (गुप्तयुगीन प्रख्यात ज्योतिषाचार्य) गुप्तयुगीन खगोलशास्त्री थे। बृहज्जातक, पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता आदि इनके प्रमुख ग्रंथ हैं। इनकी पंचसिद्धांतिका यूनानी ज्योतिर्विद्या पर आधारित है। ब्रह्मगुप्त प्रसिद्ध गणितज्ञ थे, इन्होंने ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ की रचना की है। आर्यभट्ट (चौथी पांचवीं शताब्दी ई.) प्राचीन भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘आर्यमट्टीय’ में बताया कि सूर्य स्थिर है, पृथ्वी घूमती है। उन्होंने चंद्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के कारणों तथा पृथ्वी की परिधि का भी पता लगाया। इन्होंने दशमलव स्थानिक मान की खोज की।

पालि भाषा में, बौद्ध भिक्षु नागसेन द्वारा लिखित मिलिंदपन्हो में नागसेन एवं हिंद-यवन शासक मिनांडर के बीच वार्तालाप का वर्णन है। पतंजलि पुष्यमित्र शुंग से संबंधित थे। जबकि पाणिनि (अष्टाध्यायी के रचनाकार) संभवत: 7 वीं शताब्दी ई.पू. के आसपास थे। महाभाष्य पतंजलि द्वारा रचित व्याकरण रचना है।

कालिदास चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबारी कवि थे। कालिदास को 7 ग्रंथों के प्रणयन का श्रेय दिया जाता है—

  1. रघुवंश,
  2. कुमारसंभव,
  3. मेघदूत,
  4. ऋतुसंहार,
  5. मालविकाग्निमित्रम,
  6. विक्रमोर्वशीय तथा
  7. अभिज्ञानशाकुंतलम

इनमें प्रथम दो महाकाव्य, दो खंडकाव्य तथा अंतिम तीन नाटक ग्रंथ हैं। इनके द्वारा रचित ‘मालविकाग्निमित्रम’ पांच अंकों का नाटक है, जिसनें मालविका और अग्निमित्र की प्रणय कथा वर्णित है। अग्निमित्र शुंग शासक पुष्यमित्र शुंग का पुत्र था।

कश्मीर के हिंदू राज्य का इतिहास हमें कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है। राजतरंगिणी में कुल आठ तरंग एवं आठ हजार के लगभग श्लोक हैं। इस ग्रंथ की रचना कल्हण ने राजा जय सिंह (1128-1149 ई.) के शासनकाल में की थी। कश्मीर के शासक जैनुल आबदीन द्वारा संरक्षित दो विद्वानों जोनराज एवं उनके शिष्य श्रीवर ने कल्हण की राजतरंगिणी का आगे विस्तार किया।

अश्वघोष कुषाण शासक कनिष्क के राजकवि थे। इनकी तुलना मिल्टन, गेटे, कांट तथा वाल्टेयर से की जाती है। उनकी रचनाओं में तीन प्रमुख हैं- (1) बुद्धचरित, (2) सौंदरानंद तथा (3) सारिपुत्र प्रकरण। इनमें प्रथम दो महाकाव्य तथा अंतिम नाटक ग्रंथ है। सौंदरानंद में बुद्ध के सौतेले भाई सुंदर नंद के बौद्ध धर्म ग्रहण करने का वर्णन है। इसमें 18 सर्ग हैं।

हर्ष को संस्कृत के तीन नाटक ग्रंथों का रचयिता माना जाता है- प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानंद I प्रियदर्शिका चार अंकों का नाटक है, जिसमें वत्सराज उदयन के अंतःपुर की प्रणय कथा का वर्णन हुआ है। रत्नावली में भी चार अंक हैं तथा यह नाटक वत्सराज उदयन और उसकी रानी वासवदत्ता की परिचारिका नागरिका की प्रणय कथा का बड़ा ही रोचक वर्णन करता है। नागानंद बौद्ध धर्म से प्रभावित रचना है, इसमें पांच अंक हैं। जयदेव ने हर्ष को भास, कालिदास, वाण, मयूर आदि कवियों की समकक्षता में रखते हुए उसे कविताकामिनी का साक्षात हर्ष निरूपित किया है।

परमार राजवंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले स्रोत हैं- पद्मगुप्त का नवसाहसांक चरित, मेरुतुंग का प्रबंध चिंतामणि, सीयक द्वितीय का इर्सोल अभिलेख, भोज के बांसवाड़ा तथा बेतमा के अभिलेख तथा उदयादित्य के समय का उदयपुर प्रशस्ति आदि। पद्मगुप्त के नवसाहसांक चरित में परमार वंश की उत्पत्ति आबू पर्वत से बताई गई है।

महाकवि भास के 13 नाटक

महाकवि भास के नाम से 13 नाटक उपलब्ध हुए हैं, जिन्हें टी. गणपति शास्त्री ने ट्रावनकोर राज्य से प्राप्त किया था। इन नाटकों के नाम हैं-

महाकवि भास के 13 नाटक
(1) प्रतिज्ञायौगंधरायण,
(2) स्वप्नवासवदत्ता,
(3) उरुभंग,
(4) दूतवाक्य,
(5) पंचरात्र,
(6) बालचरित,
(7) दूतघटोत्कच,
(8) कर्णभार,
(9) मध्यमव्यायोग,
(10) प्रतिमा नाटक,
(11) अभिषेक नाटक,
(12) अविमारक और
(13) चारुदत्त

गीत गोविंद के रचयिता, जयदेव बंगाल के अंतिम सेन शासक लक्ष्मणसेन के आश्रित महाकवि थे। अतः जयदेव ने बारहवीं शताब्दी में गीत गोविंद की रचना की है। इसे गीतिकाव्य कहना उचित होगा। इसमें 12 सर्ग हैं तथा प्रत्येक सर्ग गीतों से समन्वित है।

प्राचीन भारतीय पुस्तक पंचतंत्र (मूलतः संस्कृत में रचित) का पंद्रह भारतीय और चालीस विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसके मूल लेखक विष्णु शर्मा माने जाते हैं। रूउगर्टन के अनुसार, पंचतंत्र के 50 से अधिक भाषाओं में 200 से अधिक स्वरूप उपलब्ध हैं। यह भारत की सर्वाधिक बार अनुवादित साहित्यिक पुस्तक मानी जाती है। मुगल काल में पंचतंत्र का फारसी अनुवाद आयर-ए-दानिश (अबुल फजल द्वारा) शीर्षक के तहत कराया गया था। आचार्य सर्ववर्मा (Acharya Sarvavarma) ने पांच खंडों में कातंत्र व्याकरण (Katantra Vyakaram) नामक पुस्तक हिंदी एवं संस्कृत में लिखी थी।

12वीं शताब्दी के गणितज्ञ मास्कर (भास्कर II या भास्कराचार्य) ने बीजगणित के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक सिद्धांत शिरोमणि’ चार भागों- लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित और गोलाव्याय में विभाजित है। 12वीं शताब्दी में ‘मिताक्षरा’ (Mitakshara ) की रचना विज्ञानेश्वर ने की थी। इसका पहला अंग्रेजी अनुवाद लेनरी टॉमस कोलबुक के द्वारा 19वीं शताब्दी में किया गया। इसमें हिंदू नियमों का उल्लेख है।

मत्त विलास प्रहसन एक संस्कृत नाटक है। इसके लेखक पल्लव नरेश महेंद्र वर्मन हैं। इसमें तत्कालीन सामाजिक एवं धार्मिक जीवन के बारे में विवरण मिलता है। यह एक परिहास नाटक है, जिसमें धार्मिक आडंबरों पर कटाक्ष किया गया है। दंडी ने ‘दशकुमारचरित’ एवं ‘काव्यादर्श’ की रचना की। मनुस्मृति’, जिसनें कुल 18 स्मृतियां सम्मिलित हैं, की रचना मनु द्वारा की गई मानी जाती है। मनुस्मृति प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था तथा हिंदू विधि से संबंधित है। मनु को प्राचीन भारत का प्रथम एवं महान विधि निर्माता माना जाता है। शूद्रक ने प्रसिद्ध नाटक मृच्छकटिकम की रचना की। इस नाटक में ब्राह्मण चारूदत्त तथा उज्जयिनी की प्रसिद्ध गणिका वसंतसेना के आदर्श प्रेम की कहानी वर्णित है।

प्रमुख राजाओं के दरबारी कवि
दरबारी कविराजा
अमीर खुसरोअलाउद्दीन खिलजी
कालिदासचंद्रगुप्त द्वितीय
हरिषेणसमुद्रगुप्त
बाणभट्टहर्षवर्धन
अश्वघोषकुषाण शासक कनिष्क
राजशेखरगुर्जर प्रतिहारों के दरबारी कवि
जयदेवबंगाल के अंतिम सेन शासक लक्ष्मणसेन

शून्य का आविष्कार ईसा पूर्व दूसरी शती में किसी अज्ञात भारतीय ने किया था। अरबों ने इसे भारत से सीखा और यूरोप में फैलाया। अरब देश में शून्य का प्रयोग सबसे पहले 873 ई. में पाया जाता है। प्रमुख रचनाकारों की प्रमुख रचनाएं हैं- 

प्रमुख रचनाकारों की प्रमुख रचनाएं
प्रमुख रचनाकारउनकी रचनाएं
सूरदाससूरसागर, सूर सारा- वली, साहित्य लहरी
तुलसीदासरामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली।
राजशेखरकाव्यमीमांसा, बाल रामायण, बाल भारत, विद्धशाल नांजिका I
पाणिनिअष्टाध्यायी
शूद्रकमृच्छकटिकम (ब्राह्मण चारूदत्त तथा उज्जयिनी की प्रसिद्ध गणिका वसंतसेना के आदर्श प्रेम की कहानी)
पतंजलिमहाभाष्य
यास्कनिरुक्त
कात्यायनवार्त्तिक
हेरोडोटसहिस्टोरिका (हेरोडोटस- ‘इतिहास का पिता’)
विशाखदत्तमुद्राराक्षस
अमर सिंहअमरकोश
वात्स्यायनकामसूत्र
कालिदासमालविकाग्निमित्रम, ऋतुसंहार, मेघदूत, रघुवंश, कुमारसंभवम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम्
विशाखदत्तमुद्राराक्षस (नाटक), देवीचंद्रगुप्तम
दंडिन (या दंडी)‘दशकुमारचरित’ एवं ‘काव्यादर्श’
भवभूतिउत्तररामचरितम्, महावीररचित, मालतीमाधव
कुमारदासजानकीहरणम्
भवभूतिउत्तररामचरितम् (इसके सात अंकों में राम जीवन की कथा है)
चाणक्यअर्थशास्त्र (राजनीतिशास्त्र पर प्रसिद्ध ग्रंथ)
मेगास्थिनिसइंडिका
वाराहमिहिर (गुप्तयुगीन प्रख्यात ज्योतिषाचार्य)बृहज्जातक, बृहत्संहिता, पंचसिद्धांतिका (यूनानी ज्योतिर्विद्या पर आधारित है)
ब्रह्मगुप्तब्रह्मस्फुट सिद्धांत एवं ‘खण्डखाद्यक (ब्रह्मगुप्त- गणितज्ञ)
आर्यभट्टआर्यमट्टीय
नागसेनमिलिंदपन्हो (पालि ग्रंथ मिलिंदपन्हो में बौद्ध भिक्षु नागसेन तथा यवन शासक मिनांडर (मिलिंद) के संवाद हैं)
अश्वघोषबुद्धचरित, सौंदरानंद तथा सारिपुत्र प्रकरण (कनिष्क के राजकवि एवं चतुर्थ बौद्ध संगीति के उपाध्यक्ष ‘अश्वघोष’ थे)
हर्षप्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानंद
जयदेवगीत गोविंद
वाकपतिगौडवाहो (कन्नौज के शासक ‘यशोवर्मन’ के चरित्र का वर्णन किया गया है, प्राकृत भाषा में लिखित)
भारविकिरातार्जुनीयम (अर्जुन तथा ‘किरात’ वेशधारी शिव के बीच युद्ध का वर्णन)
महाकवि माघशिशुपाल वध
श्री हर्षनैषधीयचरित
चरकचरक संहिता (चिकित्सा संबंधी शास्त्र) (चरक कनिष्क के दरबार में राजवैद्य थे)
सुबंधुवासवदत्ता (सुबंधु संस्कृत भाषा के एक कवि थे)
हस्तिमल्लविक्रांत कौरव तथा मैथिली कल्याण (हस्तिमल्ल होयसल राज्य के प्रसिद्ध नाटककार एवं कन्नड़ भाषा के कवि हैं)
क्षेमेश्वरचंडकौशिक (नाटक)
बिल्हणविक्रमांकदेवचरित (इसमें कल्याणी के चालुक्यवंशी नरेश विक्रमादित्य षष्ठ का चरित्र वर्णित है)
मेरुतुंग‘प्रबंध चिंतामणि’
सर्ववर्माकातंत्र
विज्ञानेश्वरमिताक्षरा
जीमूतवाहनदायभाग
महेंद्र वर्मनमत्तविलास प्रहसन
हुइ-लीलाइफ ऑफ ह्वेनसांग
प्लिनी द एल्डरद नैचुरल हिस्ट्री
पाम्पेइस ट्रोगसहिस्टोरीयल फिलिप्पिकल
हेरोडोटसद हिस्टरी़ज

मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर की टीका है। यह संस्कृत भाषा में लिखित धर्मशास्त्र का प्रमुख ग्रंथ है, जबकि दायभाग की रचना जीमूतवाहन ने की है। यह ग्रंथ हिन्दू धर्म के संपत्ति के उत्तराधिकार से संबंधित विधि है। मीताक्षरा व्यवस्था में, पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में ही संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे, जबकि दायभाग व्यवस्था में पिता की मृत्यु के उपरांत ही पुत्र संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे।  मीताक्षरा व्यवस्था किसी परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों के संपत्ति संबंधी मामलों पर विचार करती है, जबकि दायभाग व्यवस्था किसी परिवार के केवल पुरुष सदस्यों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है।

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